Friday, January 26, 2024

ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर वाले लोगों की हो सकती है जल्दी मौत, अध्ययन में सामने आया चौकाने वाला आंकड़ा

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स्वीडन में कारोलिंस्का इंस्टिट्यूट के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन में लाइफ एक्सपेक्टेंसी ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (ओसीडी) के चिंताजनक प्रभाव के बारे में बताया गया है. अध्ययन से पता चला कि ओसीडी वाले व्यक्तियों में समय से पहले मृत्यु होने की संभावना 82 प्रतिशत ज्यादा है, जिसमें प्राकृतिक और अप्राकृतिक दोनों कारण शामिल हैं. जिसमें प्राकृतिक और अप्राकृतिक दोनों कारण शामिल हैं. हालांकि पहले किए गए शोध में ओसीडी वाले व्यक्तियों में बढ़ी हुई मृत्यु दर की पहचान की गई थी, लेकिन इसमें योगदान देने वाले स्पेसिफिक फेक्टर्स की पूरी तरह से जांच नहीं की गई थी. जिससे पता चलता है कि ओसीडी वाले व्यक्तियों में समय से पहले मौत के कारणों का ठीक से पता लगाया गया है.

ओसीडी, जो लगभग 2 प्रतिशत आबादी को प्रभावित करती है. यह डिसऑर्डर डेली लाइफ को प्रभावित करता है, रिश्तों, सामाजिक जुड़ाव और डेली कामकाज को प्रभावित करता है.

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चार दशकों (1973-2020) तक चले शोध में ओसीडी से पीड़ित 61,378 व्यक्तियों के एक ग्रुप की तुलना डिसऑर्डर के बिना 613,780 के कंट्रोल ग्रुप से की गई.

ओसीडी वाले व्यक्ति 69 साल की औसत आयु में समय से पहले मृत्यु का शिकार हो जाते हैं, जबकि डिसऑर्डर के बिना उनके काउंटरपार्ट 78 साल की औसत आयु तक जीवित रहते हैं. ये निष्कर्ष मेंटल वेलबीइंग पर इसके प्रभाव से परे, ओसीडी से जुड़े प्रभावों की आगे की जांच की अरजेंसी पर जोर देते हैं.

अध्ययन के निष्कर्ष में, शोधकर्ताओं ने लिखा कि इस जनसंख्या-बेस्ड मिलान वाले ग्रुप और भाई-बहन के ग्रुप स्टडी में नॉन-कम्युनिकेबल डिजीज और सुसाइड और दुर्घटनाओं सहित मृत्यु के बाहरी कारण, ओसीडी वाले लोगों में मृत्यु के जोखिम में प्रमुख थे.

ओसीडी वाले लोगों में घातक परिणामों को कम करने के लिए बेहतर निगरानी, ​​रोकथाम और तुरंत इलाज पर ध्यान दिया जाना चाहिए.



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Delhi top cop's son murdered in Haryana, search on for body; 1 arrested

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Thursday, January 25, 2024

‘Derek O’Brien a foreigner, knows all’: Adhir Ranjan, blamed for alliance fiasco

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Wednesday, January 24, 2024

For ‘miracle cure’, parents submerge son with cancer in Ganges repeatedly; child dies

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Sanjay Raut's brother summoned by Enforcement Directorate in 'khichdi' scam

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Tuesday, January 23, 2024

2024 की जंग में पिछड़ों का मसीहा कौन? PM मोदी ने 'कर्पूरी कार्ड' से INDIA अलायंस को कर दिया बेचैन

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बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ( Karpoori Thakur) को इस साल 'भारत रत्न' (मरणोपरांत) से सम्मानित किया जा रहा है. कर्पूरी ठाकुर बिहार में 2 बार मुख्यमंत्री और एक बार उप-मुख्यमंत्री रहे. उन्हें दबे-कुचलों और पिछड़े वर्गों के हितों की वकालत करने के लिए जाना जाता है. लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Elections 2024) से पहले 'भारत रत्न' (Bharat Ratna)का ऐलान करके भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने विपक्षी दलों के INDIA अलायंस को बेचैन कर दिया है. इसे मोदी सरकार का 'मास्टर स्ट्रोक' माना जा रहा है. मरणोपरांत कर्पूरी ठाकुर को 'भारत रत्न' देने का ऐलान करके मोदी सरकार ने बिहार के सीएम नीतीश कुमार के EBC (अति पिछड़ा वर्ग) कार्ड पर भी बड़ा दांव खेला है. ऐसे में 2024 की जंग से पहले OBC वर्ग के 'हमदर्द' को लेकर भी बहस छिड़ गई है.

बिहार के सीएम नीतीश कुमार कई मौकों पर कर्पूरी ठाकुर के लिए 'भारत रत्न' की मांग कर चुके हैं. आइए समझते हैं कि कर्पूरी ठाकुर के लिए 'भारत रत्न' के ऐलान को INDIA अलायंस के खिलाफ बीजेपी का मास्टरस्ट्रोक कैसे माना जा रहा है:-

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चुनाव से पहले ही विपक्ष को पटखनी की कोशिश
दरअसल, बिहार के 'जननायक' कर्पूरी ठाकुर की बुधवार (24 जनवरी) को 100वीं जयंती है. इससे ठीक पहले ही मोदी सरकार ने 'भारत रत्न' के लिए कर्पूरी ठाकुर के नाम का ऐलान किया. दिक्कत ये है कि बीजेपी को घेरने के लिए INDIA अलायंस का कोई भी दल 'भारत रत्न' के ऐलान का विरोध नहीं कर सकेगा. नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव तो ऐसा कतई नहीं करेंगे. अगर उन्होंने मोदी सरकार के इस कदम का विरोध किया, तो चुनाव से पहले OBC वोटर्स की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है. 

गौर करने वाली बात ये है कि खुद नीतीश कुमार हाल में कई मौकों पर कर्पूरी ठाकुर के लिए 'भारत रत्न' की मांग कर चुके हैं. बेशक नीतीश ने EBC और OBC वोटर्स को साधने के लिए ये मांग की हो, लेकिन पीएम मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने उनकी इस मांग को मानकर सारा क्रेडिट ले लिया. 

कर्पूरी ठाकुर को 'भारत रत्न' से सम्मानित करने का मोदी सरकार फैसला वैसे हर तरह से बीजेपी के लिए हितकारी ही साबित होता दिख रहा है:-

बिहार के सबसे बड़ा OBC चेहरा
कर्पूरी ठाकुर को बिहार का जननायक कहा जाता है. वो बिहार के सबसे बड़े OBC चेहरे भी थे. उन्होंने हर वर्ग के लिए काम किया. कर्पूरी ठाकुर ने कई ऐसे फैसले लिए जो न सिर्फ बिहार में बल्कि देश में मिसाल बने. उन्होंने देश में सबसे पहले पिछड़ा वर्ग को आरक्षण दिया. देश में सबसे पहले महिलाओं और आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को आरक्षण देने का क्रेडिट भी कर्पूरी ठाकुर को जाता है. बता दें कि बाद में ये फैसला खत्म कर दिया गया था.

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कर्पूरी ठाकुर की विरासत में हिस्सेदारी की कोशिश
बिहार के दिग्गज नेता लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार कर्पूरी ठाकुर की ही पाठशाला के छात्र रहे हैं. दोनों ने कर्पूरी ठाकुर से ही राजनीति के गुर सीखे थे. जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल उनपर अपना एकाधिकार मानती आई है.
ऐसे में कर्पूरी ठाकुर के लिए देश के सबसे बड़े सम्मान का ऐलान करके बीजेपी ने चुनाव से पहले OBC वर्ग को टारगेट तो किया ही है, इसके साथ ही कर्पूरी ठाकुर की विरासत में हिस्सेदारी की कोशिश भी की है. इसके लिए बीजेपी पहली बार कर्पूरी ठाकुर के नाम पर समारोह आयोजित कर रही है.

बिहार के वोट बैंक को किया टारगेट
माना जाता है कि बिहार की राजनीति में कर्पूरी ठाकुर की विरासत वोट बैंक के रूप में 36 प्रतिशत से अधिक है. ये सभी अति पिछड़ी जातियों से हैं. इनके बल पर ही लालू प्रसाद 15 साल शासन में रहे. इसी आबादी के दम पर नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में बने हुए हैं. अति पिछड़ी आबादी को नीतीश कुमार की सबसे बड़ी राजनीतिक पूंजी मानी जाती है, जिसे बीजेपी ने टारगेट किया है.

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नीतीश कुमार का गेम किया 'हाइजैक'
दरअसल, बिहार में 2023 के जाति आधारित गणना के बाद नीतीश कुमार ने अति पिछड़ी जातियों का आरक्षण कोटा बढ़ा दिया. ऐसा करके नीतीश कुमार ने खुद का 'अति पिछड़ा वर्ग का मसीहा' बताने की कोशिश की. लेकिन बीजेपी के इस ऐलान के बाद नीतीश कुमार की बेचैनी जरूर बढ़ गई होगी.

बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं. 2 अक्टूबर 2023 को बिहार सरकार ने जातीय गणना की रिपोर्ट जारी की थी. इसके मुताबिक राज्य में 27.12% पिछड़ा वर्ग और 36% आबादी अत्यंत पिछड़ा वर्ग की है. दोनों को जोड़ दें तो इनकी संख्या 63% हो गई है. दूसरी तरफ मौजूदा समय में बिहार में अत्यंत पिछड़ा वर्ग (EBC) को 18% और पिछड़ा (OBC) को 12% आरक्षण दिया जा रहा है. यानी EBC और OBC को मिलाकर 30% के रिजर्वेशन का प्रावधान है.

जनता से सीधा संवाद
मोदी सरकार का यह कदम बिहार की जनता से एक तरह से सीधा संवाद है. मोदी सरकार ने एक बार फिर संदेश देने की कोशिश की है कि उसकी राजनीति हर वर्ग के लिए है. किसी भी नेक शख्स का काम भुलाया नहीं जाएगा. समय आने पर सबको एक समान मौका मिलेगा और सम्मान भी.



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'At whose behest?': Supreme Court grapples with listing row in Adani Power case

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Monday, January 22, 2024

Zomato suspends delivery of non-veg items in North India, says this is due to govt order

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Sunday, January 21, 2024

राहुल गांधी 22 जनवरी को वैष्णव संत शंकरदेव के जन्मस्थान पर जायेंगे : कांग्रेस

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कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को अयोध्या में रामलला विग्रह के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के दौरान वैष्णव संत श्रीमंत शंकरदेव की जन्मस्थली बोर्दोवा थान का दौरा करने से बचने की असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा के परामर्श पर कांग्रेस ने रविवार को जोर देकर कहा कि गांधी की यात्रा निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार जारी रहेगी. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि गांधी अपनी पूर्व निर्धारित योजना के अनुसार असम के नागांव जिले में बोर्दोवा थान का दौरा करेंगे. उन्होंने आग्रह किया कि 'इस पर कोई राजनीति नहीं की जानी चाहिए'.

गांधी मणिपुर से मुंबई तक 'भारत जोड़ो न्याय यात्रा' का नेतृत्व कर रहे हैं और यह यात्रा 18 जनवरी को असम पहुंची थी और यह 25 जनवरी तक प्रदेश में रहेगी. कार्यक्रम के अनुसार, यात्रा रविवार को नागांव पहुंचेगी और रात में वहीं रुकेगी तथा अगली सुबह वहां से आगे के लिये प्रस्थान करेगी.

गांधी के साथ यात्रा में शामिल रमेश ने संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘‘यात्रा का मार्ग 3-4 सप्ताह पहले तय किया गया था और कार्यक्रम के अनुसार, हम 22 जनवरी को नागांव में होंगे.''

उन्होंने कहा, 'हमें लगता है कि यह जरूरी है कि हम बोर्दोवा थान का दौरा करें, क्योंकि हम नागांव से गुजर रहे हैं. यह महान समाज सुधारक श्रीमंत शंकरदेव का जन्मस्थान है, जिनका जीवन आज भी करोड़ों लोगों को प्रेरित करता है.' कांग्रेस नेता ने कहा, 'इस पर कोई विवाद नहीं होना चाहिए था. इस पर कोई राजनीति नहीं की जानी चाहिए.'

उन्होंने बताया कि गांधी सोमवार सुबह थान का दौरा करेंगे और उसके बाद दिन में आगे की यात्रा शुरू करेंगे. उन्होंने कहा कि इस दौरान वह पड़ोसी मेघालय में प्रवेश करने से पहले मोरीगांव जिले से गुजरेंगे.

यह यात्रा पड़ोसी राज्य मेघालय की एक छोटी यात्रा के बाद असम लौट आएगी. शर्मा ने रविवार को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि गांधी को 22 जनवरी को बोर्दोवा थान जाने से बचना चाहिए, क्योंकि भगवान राम और राज्य में एक प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित मध्ययुगीन वैष्णव संत के बीच कोई प्रतिस्पर्धा नहीं हो सकती है. उन्होंने यह भी कहा कि सोमवार को यात्रा के दौरान अल्पसंख्यक बहुल इलाकों के संवेदनशील मार्गों पर कमांडो तैनात किये जायेंगे.

उन्होंने कहा, 'हम राहुल गांधी से अनुरोध करेंगे कि वह सोमवार को राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दौरान बोर्दोवा थान न जाएं, क्योंकि इससे असम की गलत छवि बनेगी.' रमेश ने शनिवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि गांधी 22 जनवरी को वैष्णव संत शंकरदेव के जन्मस्थान जाएंगे.

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Moderate fog, clear sky: Check Ayodhya's weather forecast for tomorrow

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Saturday, January 20, 2024

गठबंधन के लिए कांग्रेस से बातचीत जारी, जल्द फैसला होने की उम्मीद : अखिलेश यादव

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लखनऊ: आगामी लोकसभा चुनाव के लिए राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के साथ सीट बंटवारे पर सहमति बनने के एक दिन बाद समाजवादी पार्टी (सपा) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने शनिवार को कहा कि गठबंधन के लिए कांग्रेस से बातचीत जारी है और उन्‍होंने उम्मीद जताई कि फैसला जल्द होगा.

यहां सपा मुख्यालय में पत्रकारों से बातचीत करते हुए अखिलेश यादव ने कहा, ‘‘हम कांग्रेस से (लोकसभा चुनाव में) गठबंधन के लिए बातचीत कर रहे हैं, दिल्ली में कई बैठकें हो चुकी हैं. जल्द ही और बैठकें होंगी और रास्ता निकाला जाएगा.''

उन्होंने कहा, ‘‘विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया' को मजबूत होना चाहिए. सवाल सीट का नहीं बल्कि जीत का है, जीत के आधार पर हम सब मिलकर फैसला लेंगे.''

समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) ने लोकसभा चुनाव के लिए शुक्रवार को गठबंधन की औपचारिक घोषणा की. इसके साथ ही रालोद ने कहा कि वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सात सीट पर चुनाव लड़ेगी. इस साल के अंत में होने वाले चुनाव के लिए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और रालोद प्रमुख जयंत चौधरी ने शुक्रवार को सोशल मीडिया पर गठबंधन की घोषणा की.

हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा का कांग्रेस के साथ कोई औपचारिक गठबंधन नहीं था, लेकिन पार्टी ने सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी की क्रमशः रायबरेली और अमेठी सीट पर अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था. उप्र में लोकसभा की 80 सीट हैं.

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