भूकंप प्रभावित तुर्की में राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (NDRF) का मिशन 'ऑपरेशन दोस्त' भावनात्मक, पेशेवर और व्यक्तिगत चुनौतियों से भरा रहा. मिशन के लिए एक अर्द्धचिकित्सा कर्मी को अपने 18 महीने के जुड़वां बच्चों को छोड़कर जाना पड़ा. इस अभियान के लिए अधिकारियों को रातों रात 140 से अधिक पासपोर्ट तैयार करने के लिए सैकड़ों कागजों से संबंधित प्रक्रिया पूरी करनी पड़ी. वहीं, बचावकर्मी 10 दिन तक नहा भी नहीं पाए. इस मुश्किल मिशन से लौटने के बाद भी आपदा कर्मियों का यही कहना था कि ‘‘काश हम और जानें बचा पाते.''
इन कर्मियों को तुर्की में राहत अभियान के दौरान पीड़ितों और उनके परिजनों से बहुत सराहना मिली. अपनी पत्नी और तीन बच्चों की मौत का शोक मना रहे ऐसे ही एक तुर्की नागरिक अहमद ने उप कमांडेंट दीपक को शाकाहारी भोजन उपलब्ध कराने में मदद की. दीपक ने बताया, ‘‘उन्हें जो शाकाहारी पदार्थ मिले, वो सेब या टमाटर की तरह थे. उन्होंने इस पर नमक, स्थानीय मसाले डालकर स्वाद बढ़ाने की कोशिश की.''
एनडीआरएफ के 152 सदस्यीय तीन दल और छह खोजी कुत्ते फुर्ती के साथ आपदा क्षेत्र में पहुंचे. इस दल का वहां से लौटना बहुत भावनात्मक रहा. उन्होंने बताया कि इस मुश्किल वक्त में भी आपदा राहत कर्मियों की मदद करने वाले लोगों के साथ तार से जुड़ गये थे. तुर्की के कई नागरिकों अपने हिंदुस्तानी दोस्तों के प्रति नम आंखों से आभार जताया.
‘ऑपरेशन दोस्त' नामक इस अभियान की शुरुआत 7 फरवरी को हुई. इसमें दो छोटी बच्चियों को जिंदा बचाया गया और मलबे से 85 शव बाहर निकाले गये. यह दल पिछले सप्ताह भारत लौट आया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को यहां अपने आधिकारिक आवास पर इस दल को सम्मानित किया.
एनडीआरएफ के महानिरीक्षक एन एस बुंदेला ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘विदेश मंत्रालय के कंसुलर पासपोर्ट और वीजा विभाग ने रातों रात हमारे बचावकर्मियों के लिए पासपोर्ट तैयार किये.'' किसी विदेशी आपदा राहत अभियान में पहली बार भेजी गयीं पांच महिला कर्मियों में शामिल कांस्टेबल सुषमा यादव (52) को अपने 18 महीने के जुड़वां बच्चों को छोड़कर अचानक निकलना पड़ा. लेकिन उनके मन में एक बार भी अभियान में नहीं जाने की बात नहीं आई.
उन्होंने कहा, ‘‘अगर हम ऐसा नहीं करेंगे तो कौन करेगा?''उन्होंने कहा, ‘‘एनडीआरएफ की टीम में दो पैरामेडिक थे जिनमें मैं और एक अन्य पुरुष साथी थे. हमारा काम बचावकर्मियों को सुरक्षित, स्वस्थ रखना था, ताकि वे शून्य से कम तापमान में बिना बीमार हुए काम करते रहें.''
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